Wednesday 10 August 2016

एक रात तो गुजारिये गौरक्षकों के साथ :)

आधी रात के बाद राजस्थान के एक सुनसान गांव के चौराहे पर अंधेरे में वो बाहर निकलता है.

सर्दियों की आहट लिए यह चांदनी के उजाले वाली एक रात है. पूरा इलाक़ा पहाड़ियों और पेड़ों की छाया में डूबा है.

तभी एक दर्जन से ज़्यादा आदमी भूतों की तरह अंधेरे से प्रकट होते हैं.
राजस्थान के इस इलाक़े में जांच पड़ताल करने वाले नवल किशोर शर्मा चिल्लाते हैं, ''आस पड़ोस में किसी गाड़ी की कोई सूचना?''
बाक़ी आदमी सिर हिला देते हैं और उनमें से एक कहता है, ''अभी तक तो कुछ भी नहीं मिला, आज सब कुछ शांत लगता है.''

मोटरसाइकिल पर सवार शर्मा गठीले बदन के आदमी हैं. उनके बाल तेल से चमक रहे हैं और उनकी साफ़सुथरी दाढ़ी है. डेनिम की पैंट और हल्के पीले रंग की शर्ट के साथ ख़ाकी रंग का जूता पहन रखा है. रात होते ही सभी एक एक कर जमा हो जाते हैं, सबका एक मिशन है, गाय की रक्षा।

ये सभी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखाओं में जाते हैं.
इनमें से कुछ तो 15 साल की उम्र तक के हैं. इनमें किसान, दुकानदार, अध्यापक, छात्र, डॉक्टर और बेरोज़गार सभी तरह के लोग शामिल हैं. अगुआई करने वाला शर्मा जी समेत अधिकांश का मानना था कि दादरी की घटना में जिस मुस्लिम आदमी को पीट-पीट कर मार डाला गया उसने वाक़ई में बीफ़ का सेवन किया था और ‘जब लड़ाई होती है तो लोग मरते हैं.’
इन सभी का भरोसा है कि 'गाय माता' ख़तरे में है.

इनमें से एक सूरज भान गुर्जर का कहना था, 'अगर हमने अभी नहीं रक्षा की तो गाय 20 सालों में ही ग़ायब हो जाएगी.'
इसी तरह के मिथकों और जोशो ख़रोश के साथ ये रात-रात भर गाय तस्करों को खोजते फिरते हैं. ये सभी लोग लाठी, डंडो, बेसबॉल बैट, हॉकी, पत्थरों, माचिस और डंडों पर हंसिया लगे हथियारों से लैस होते हैं.

ये लोग गाड़ियों को रोकने के लिए सड़क पर कीलें बिछा देते हैं और अपनी मोटरसाइकिल पर तस्करों का पीछा करते हैं.
गाय को बचाने की यह लड़ाई थोड़ी अव्यवस्थित सी दिखती है. तस्कर अंधेरे में इनकी ओर फ़ायर करते हैं और अक्सर ही उनकी तेज़ रफ़्तार गाड़ियों का पीछा किया जात है.

किसी ने कुछ दूरी पर जलती रोशनी देखी और ये लोग ज़मीन पर झुक गए. जब टिमटिमाती रोशनी बुझ गई तब पता चला कि यह किसी गाड़ी की नहीं थी.
एक और निगरानी ग्रुप ने एक ट्रक को रोका. लोगों में उत्तेजना बढ़ गई और सभी लोग उस ट्रक पर चढ़ गए लेकिन उन्हें हताशा हाथ लगी. इसमें दिल्ली के बाज़ार के लिए सूअर भर कर ले जाया जा रहा था.
ट्रक के ड्राइवर ज़ाकिर हुसैन से इन लोगों ने पूछा, ''तुम एक मुस्लिम हो और सूअर ले जा रहे हो?''
हुसैन ने कहा, ''मैं जीने के लिए हर चीज़ ढोता हूँ.''

इस समूह का दावा है कि उन्होंने अबतक 18 हज़ार गायों को बचाया है. इन गायों को 1992 में शुरू हुई एक गोशाला में रखा गया. इसमें अगर हम आक्रमक नहीं होंगे तो गौहत्यारे भी हत्यारों से लैस होते हैं वो हमें मारने में देर नहीं करते, कई बार गोलियां चलती हैं, हम सड़क पर लेट कर जान बचाते हैं पर छोड़ते नहीं है।

ध्रुव सिंह नाम के एक पुलिसकर्मी कहते हैं, ''गो तस्करी की शिकायतों को हम बहुत गंभीरता से लेते हैं और गाय सुरक्षा दल इसमें हमारी मदद करते हैं.''

दिन में सभी गौरक्षक आजीविका के लिए मेहनत करते है, जागते हैं , बावजूद इसके रात में सभी जान जोखिम में डालकर गौरक्षा का कार्य करते हैं। इसमें वो लोग सफल हुए हैं। किसी किसी दल का दावा है कि उन्होंने एल लाख से ऊपर गायों को बचाया है।

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