20 जुलाई की रात को जब मनीषा नाम की एक महिला अपने पति प्रशांत के साथ मायके से काले खां की सराय होते हुए अपनी ससुराल बाबरी मंडी जा रही थी। रास्ते में चार मुस्लिम युवा आमिर, भूरा, शादाब और नदीम ने मनीषा की साड़ी खींची। विरोध करने पर ये लोग मनीषा और उसके पति को खींचकर करीब 80 मीटर अंदर गली में ले गए। इन लोगों ने वहां मनीषा के साथ अश्लील हरकतें कीं और उसके पति के साथ मारपीट की।
शोरगुल होने पर मनीषा के ससुर रविन्द्र वार्ष्णेय और अन्य परिजन वहां पहुंचे। उनके साथ आसपास के हिन्दू भी थे। चारों बदमाशों ने मनीषा के परिजनों पर चाकू से हमला किया। इस हमले से मनीषा के ससुर और देवर घायल हो गए। बदमाशों ने अन्य हिन्दुओं को भी डराया-धमकाया। इस बीच मुहल्ले के तमाम मुसलमान वहां इकट्ठे हो गए और हिन्दुओं को मारने-पीटने लगे। दूसरी ओर घरों और मस्जिद की छत से हिन्दुओं पर पथराव और गोलीबारी भी की गई।
जब मनीषा और उसके ससुर बदमाशों के खिलाफ एफ.आई. आर. दर्ज कराने पुलिस थाने गए तो पुलिस ने एफ. आई.आर. दर्ज नहीं की। जब इसकी खबर शहर की महापौर शकुंतला भारती को लगी तो वे धरने पर बैठ गईं। इसके बाद पुलिस ने एफ. आई. आर. दर्ज की। लेकिन न जाने क्यों पुलिस इस मामले में बहुत ही सुस्त दिख रही है। इस रपट के लिखे जाने तक केवल तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था। रविन्द्र कहते हैं, ''प्रशासन की लापरवाही के कारण मुसलमानों के हौसले बुलंद हैं।
ये सच्ची घटना में जरूर सोचिये दोस्तों कि हज़ारों मुसलमानो में एक भी "अच्छा वाला मुस्लमान " क्यों आगे नहीं आया ? ? किसी की पत्नी के साथ मुस्लमान बुरा कर रहे थे आखिर क्यों सबने आरोपियों का ही साथ दिया ?
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