Wednesday 10 August 2016

जब हैदराबाद एक देश बनते बनते रह गया

कम ही लोगों को पता होगा कि हैदराबाद एक देश बनते बनते रह गया था ..
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आजादी के समय हैदराबाद की आबादी का 85% हिंदू लोग थे जबकि अल्पसंख्यक होते हुए भी मुसलमान वहाँ के प्रशासन और वहाँ कि सेना में महत्वपूर्ण पदों पर बने हुए थे |

हैदराबाद की जनता भारत में विलय चाहती थी लेकिन हैदराबाद का निजाम मीर उस्मान अली खान बहादुर हैदराबाद को एक स्वतन्त्र देश का रूप देना चाहता था इसलिए उसने भारत में हैदराबाद के विलय कि स्वीकृति नहीं दी।

निज़ाम हैदराबाद के भारत में विलय के किस क़दर ख़िलाफ था , इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उसने जिन्ना को संदेश भेजकर ये जानने की कोशिश की थी कि क्या वह भारत के ख़िलाफ़ लड़ाई में हैदराबाद का साथ देंगे ताकि हैदराबाद में मुसलमानों का ही शासन बना रहे ??

जिन्ना ने इसका जवाब देते हुए कहा था कि वो मुट्ठी भर मुसलमानों के लिए अपने पाकिस्तान के अस्तित्व को ख़तरे में नहीं डालेंगे |

निजाम कि इस हेकड़ी को दूर करने के लिए सरदार पटेल ने 13 सितम्बर 1948 को सैन्य कार्यवाही आरम्भ कर दी | यद्यपि वह सैन्य कार्यवाही ही था किन्तु उसे पुलिस कार्यवाही बतलाया गया था जिसका नाम ‘ऑपरेशन पोलो’ रखा गया था ।

भारतीय सेना की इस कार्रवाई को ऑपरेशन पोलो का नाम इसलिए दिया गया क्योंकि उस समय हैदराबाद में विश्व में सबसे ज़्यादा 17 पोलो के मैदान थे.

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इस कार्यवाही से पहले नवाब ने अपने सबसे खासम्खास और हैदराबाद के मशहूर गुंडे कासिम रिजवी को सरदार पटेल को धमकी देने के लिए दिल्ली भेजा | कासिम रिजवी ‘मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (MIM ) नामक पार्टी का मुखिया था और उसने हैदराबाद के हिंदुओं को डराने और दबाने के लिए 2 लाख के करीब कट्टर मुसलमानों कि एक फ़ौज बनाई हुई थी जिसे कि ‘’ रजाकार ‘’ के नाम से जाना जाता था |
( नोट -ओवैसी भाई इसी MIM पार्टी की विचारधारा को आज भी आगे बढ़ा रहे हैं )

कहने को तो हैदराबाद का शासन नवाब के हाथों में था लेकिन बताया जाता है कि नवाब बस कासिम रिजवी के हाथों कि एक कठपुतली भर था और नवाब खुद कासिम रिजवी से डरता था |

कासिम रिजवी और सरदार पटेल के बीच इस पर बड़ी ही दिलचस्प बातचीत हुई

सरदार पटेल ने कहा –

‘’ हैदराबाद का इतिहास इस बात कि गवाही नहीं देता कि ये भारत से अलग हो ,हैदराबाद हमेशा से भारत कि ही रियासत रहा है,अब चूँकि अंग्रेज जा चुके हैं तो अब आपको और आपके नवाब साहब को भी हैदराबाद का शासन हैदराबाद कि जनता के हाथों में दे देना चाहिए और हैदराबाद कि जनता भारत के पक्ष में है ‘’

कासिम रिजवी ने कहा –

‘’ पटेल साहब आप सरदार होंगे दिल्ली के, हमारे सरदार आप नहीं हैदराबाद के नवाब मीर उस्मान अली खान साहब हैं ,हैदराबाद में पिछले कई सालों से मुसलमानों का शासन है और वही रहेगा ,वो दिन दूर नहीं जब हैदराबाद कि सरहदों को अरब सागर कि लहरें छुएंगी और अगर आप अपने इस रुख पर कायम रहे तो मुसलमानों का जो झंडा आज हैदराबाद के ऊपर लहरा रहा है फिर वो हमें आपकी दिल्ली के लाल किले के ऊपर भी गाड़ने और लहराने पर मजबूर होना पड़ेगा ,इसलिए आपकी और आपके भारत कि भलाई इसी में है कि हैदराबाद को कोई छोटी-मोटी रियासत ना मानकर एक अलग देश के दर्जे में स्वीकार करें ‘’

सरदार पटेल ने कहा –

‘’ अब अगर आप इस तरह कि ख़ुदकुशी करने पर अड़े ही हुए हैं तो कोई कर भी क्या सकता है, हम बस आपको समझा सकते हैं कि इस प्रकार का रवैया आपके और आपके नवाब साहब के हित में नहीं है ‘’

कासिम रिजवी ने कहा –

‘’ पटेल साहब आपकी इन धमकियों से ओर लोग डरते होंगे हम नहीं डरते और आप हमारी चिंता ना करें,आपको चिंता होनी चाहिए हैदराबाद में मौजूद डेढ़ करोड़ हिंदुओं कि जिनका फिर सफाया करने के लिए हमें मजबूर होना पड़ेगा अगर आप अपनी जिद पर अड़े रहे तो ‘’

कासिम रिजवी कि ये धमकी सुनते ही सरदार पटेल कि आँखों में खून उतर आया लेकिन फिर भी अपने ऊपर पर काबू रखते हुए वे बोले कि –

‘’ अच्छा तो अब बात यहाँ तक पहुँच चुकी है , तो बस एक बात और बताते जाइए कासिम साहब कि आपको क्या लगता है , जब आप हैदराबाद के डेढ़ करोड़ हिंदुओं का सफाया कर रहे होंगे तो उस समय हम क्या कर रहे होंगे ?? ‘’

ये सुनते ही कासिम रिजवी के एक बार तो होश उड़ गए लेकिन फिर वो अनजान बनते हुए बोला – ‘’ हमें क्या मालुम ‘’

सरदार पटेल बोले –

‘’ बस तो फिर जिस बात के बारे में मालुम ना हो वो बात बोलनी नहीं चाहिए,कई बार काफी महंगी पड़ सकती है ‘’

और वो मीटिंग खत्म हो गई | लेकिन सच में कासिम रिजवी को सरदार पटेल को दी गई वो धमकी काफी महंगी पड़ी थी |

इस मीटिंग के बाद कासिम रिजवी और उसकी रजाकार सेना ने हैदराबाद में हिंदुओं का कत्ले-ऐ-आम शुरू कर दिया | हिंदुओं के गाँव के गाँव जला दिए गए और हैदराबाद कि सड़कों पर खून-खराबा होने लगा |

भारतीय सेना के पूर्व उपसेनाध्यक्ष लेफ़्टिनेंट जनरल एसके सिन्हा अपनी आत्मकथा स्ट्रेट फ्रॉम द हार्ट में लिखते हैं,

" मैं जनरल करियप्पा के साथ कश्मीर में था कि उन्हें संदेश मिला कि सरदार पटेल उनसे तुरंत मिलना चाहते हैं. दिल्ली पहुंचने पर हम पालम हवाई अड्डे से सीधे पटेल के घर गए. मैं बरामदे में रहा जबकि करियप्पा उनसे मिलने अंदर गए और पाँच मिनट में बाहर आ गए. बाद में उन्होंने मुझे बताया कि सरदार ने उनसे सिर्फ एक सवाल पूछा कि अगर हैदराबाद के मसले पर पाकिस्तान की तरफ़ से कोई सैनिक प्रतिक्रिया आती है तो क्या वह बिना किसी अतिरिक्त मदद के उन हालात से निपट पाएंगे ?? करियप्पा ने इसका जवाब दिया 'हाँ' और उनके सिर्फ हाँ कहते ही पटेल ने वो बैठक ख़त्म कर दी | “

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इसके बाद 12 सितम्बर 1948 को कैबिनेट कि एक बहुत बड़ी बैठक हुई जिसमें नेहरु और पटेल के साथ उस समय भारतीय सेना के सभी बड़े अफसर मौजूद थे | वहाँ पर इस फैसले पर अंतिम मोहर लगाई गई कि जिस प्रकार से हैदराबाद में भारत-विरोधी गतिविधियां चल रही हैं ,पाकिस्तान द्वारा भारी-मात्रा में गोला-बारूद वहाँ भेजा जा रहा है तथा वहाँ की हिंदू जनता जो कि भारत में विलय के पक्ष में है उनका कासिम रिजवी और उसकी रजाकार सेना के द्वारा जिस प्रकार से रोज कत्ले-ऐ-आम किया जा रहा है उसे रोकने के लिए अब वहाँ सेना भेजनी ही होगी |

सरदार पटेल ने कहा कि -

‘’ हैदराबाद भारत के पेट में मौजूद एक कैंसर का रूप लेता जा रहा है जिसका ईलाज एक सर्जिकल ऑपरेशन करके ही सम्भव है | ‘’

मीटिंग में मौजूद सभी सेनाध्यक्षों ने इस पर अपनी सहमती दी लेकिन एक सेनाध्यक्ष जनरल रॉबर्ट बूचर इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ थे | उनका कहना था कि अभी कश्मीर का मसला सुलझा नहीं है और उससे पहले हैदराबाद में सेना भेजने से हमें दोहरी लड़ाई लड़नी पड़ेगी जिसके लिए हम अभी तैयार नहीं हैं | जनरल रोबर्ट बूचर ने तो उस मीटिंग में यहाँ तक कह दिया कि अगर मेरी बात नहीं मानी गई तो मैं कल ही अपना इस्तीफा दे दूँगा |

उनके इस्तीफे कि बात सुनकर सारी मीटिंग में सन्नाटा छा गया , डरे हुए नेहरु जी ने सरदार पटेल कि ओर देखा | सरदार पटेल ने मुस्कुराते हुए कहा कि –

‘’ जनरल बूचर आप अगर देना चाहें तो आज से ही अपना इस्तीफा दे दीजिए लेकिन हैदराबाद में ऑपरेशन कल से हर हाल में शुरू होगा ‘’

पटेल जी से इतना सुनते ही जनरल बूचर गुस्से में पैर पटकता हुआ उस मीटिंग से चला गया |

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भारतीय सेना और कासिम रिजवी कि कट्टर मुसलमानों वाली रजाकार सेना के बीच 5 दिन तक युद्ध चला ,दो हजार से ज्यादा रजाकारों को भारतीय सेना ने सीधा नर्क में पहुंचा दिया और बाकी के रजाकार बीच मैदान से ही भाग खड़े हुए |

चूँकि हैदराबाद के नवाब कि सेना ने भी भारतीय सेना के खिलाफ रजाकारों का साथ दिया था तो उन्हें भी भारी क्षति उठानी पड़ी और एक प्रकार से हैदराबाद कि सारी सेना इस युद्ध में तहस-नहस हो गई | भारतीय सेना को इस कारवाई में अपने 66 जवान खोने पड़े जबकि 97 जवान घायल हुए

कासिम रिजवी को जिन्दा गिरफ्तार किया गया और भारतीय जेल में डाला गया | हैदराबाद का नवाब मीर उस्मान अली खान समझ चुका था कि अब उसकी खैर नहीं | भारतीय सेना उसके महल तक आ चुकी थी तो इसलिए अब उसने पाला बदल लिया और अपने रेडियो संदेश में भारत के खिलाफ जंग करने का सारा ठीकरा कासिम रिजवी पर डाल दिया और कहा कि कासिम रिजवी और उसकी सेना ‘’ रजाकारों ‘’ ने ही सारे हैदराबाद में आतंक मचाया हुआ था ,इसमें मेरा कोई हाथ नहीं ,मैं तो उनकी वजह से मजबूर था |

इसके बाद निजाम ने भारत के सामने खुद का और हैदराबाद का आत्म-समर्पण कर दिया | नेहरु और सरदार पटेल ने दरियादिली दिखाते हुए निजाम को गिरफ्तार नहीं किया और थोड़े समय तक उसे ही हैदराबाद का निजाम बने रहने कि ईजाजत दे दी लेकिन अब उसके पास पहले जैसी ताकत नहीं रही थी क्योंकि अब हैदराबाद का पूर्ण रूप से भारत में विलय हो गया था |

इसके बाद जब सरदार पटेल हैदराबाद आए तो निजाम मीर उस्मान अली खान को उनके स्वागत के लिए हवाई-अड्डे पर ना चाहते हुए भी जाना पड़ा क्योंकि सरदार पटेल कि ताकत वो अब अच्छे से देख और समझ चुके थे |

सरदार पटेल के हवाई जहाज से उतरने पर निजाम ने अपना सिर झुकाकर पटेल का स्वागत किया और कहा कि –
‘’ कभी-२ इंसान से गलतियाँ हो जाया करती हैं ‘’

इस पर सरदार पटेल ने मुस्कुराते हुए कहा कि –

‘’ बिलकुल सही लेकिन फिर उन गलतियों का एक परिणाम भी निकलता है जो कि गलती करने वाले को भोगना ही पड़ता है ,फिर वो उससे बच नहीं सकता ‘’

यदि सरदार पटेल ने उस समय अपनी दृढ़ राजनैतिक इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए सैन्य कार्यवाही नहीं किया होता तो आज हैदराबाद भी कश्मीर की तरह से भारत के लिए हमेशा का सरदर्द नहीं बन गया होता — 10 अगस्त 2013 की पोस्ट

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