Wednesday 10 August 2016

,मोदीअंधभक्त चले केजरीभक्तों की राह।

इन दो दिनों में अंधभक्तो ने बचाव के लिए वही दो सवाल बार बार दागे जो मुल्ले और जय भीम वाले पहले से कर रहे थे,
पहला:
ये गौभक्तों ने एक गाय घर में तो पाला नहीं होगा लेकिन उछल कूद मचा रहे हैं।
(ये सवाल अलग अलग भाषा शब्दों के साथ लगभग सबने किया)

दूसरा:
उधर राजस्थान के गौशाला में सैकड़ों गायें मर गयी तो कहाँ थे गौभक्त ?
(इस मुद्दे को भी अलग अलग तरीके से लिखा गया)

पहले सवाल का जवाब:
ये जरूर नहीं कि अगर आप पुलिस नहीं तो चोर गुंडों के बारे में सवाल ना उठाएं। जरुरी नहीं कि आपने किसी बलात्कार पीड़िता को पैसे से या किसी तरह से मदद  नहीं की तो आपको उस पीड़िता के बारे में बोलने का हक़ नहीं । मैं गौपालन नहीं करता पर दूध, चाय कॉफी तो पीता हूँ, दही, लस्सी, पेड़ा, बर्फी, खोया, खीर आदि तो खाता हूं ? कहाँ से आ रहा है ? और गाय के दूध पर इतनी निर्भरता हो तो गाय दुनिया में जहां भी होगी मैं अहसानमंद होकर उसके लिए लड़ूंगा, बोलूंगा। मैंने आर्थिक वजह से किसी गरीब की मदद नहीं की तो क्या मैं गरीबों के बारे में कभी नहीं बोलूं ? ? ये कितना घटिया, बददिमाग वाला तर्क है जो आंधभक्तो ने लगभग हर जगह पोस्ट किया।

दूसरे सवाल का जवाब :
गौशाला में जो गायें मरी है वो एक सरकारी गौशाला है। 15 करोड़ रुपये का सालाना खर्च सरकार देती है। लेकिन ये सिर्फ कागजों पर है, कई महीने से वहाँ लोगों को वेतन नहीं मिला था, उनलोगों ने काम छोड़ दिया क्योंकि वो गौभक्त नहीं बल्कि मासिक वेतन पर कार्य करने वाले कर्मचारी थे। अगर गौभक्त भी उसमे कुछ होंगे तो जीने के लिए कुछ पैसे तो चाहिए ? गौभक्त या गौरक्षा दल वाले कुछ व्यापार करते हैं या दिन में काम करते हैं फिर साथ में गौसेवा का कार्य चालू रखते हैं। किसी को 24 घंटे का काम अगर गौसेवा को दे दिया और पैसे नहीं दोगे तो कोई भी काम नहीं करेगा।

दूसरी बात ये गौसेवकों का देशभर में प्रभाव था कि इस मामले को मीडिया ने प्रमुखता से छापा भले ही आलोचना की हो लेकिन इस पर ध्यान क्यों गया ? वसुंधरा राजे तक को बयान देना पड़ा और आगे आना पड़ा, किसकी वजह से ? और किसी को पता कहाँ था कि ऐसा हो रहा है ? देश में कहाँ कहाँ गायें मर रही है ये किसी को पता नहीं होता। आज राजस्थान में कौन सा आदमी मर रहा है या घायल है ये उत्तरप्रदेश के लोगों को पता होगा क्या ? संगठन अलग अलग जगहों पर हैं।

अगर देश भर में एक यूनियन होता, सारे संगठन इसके सदस्य होते, और ऐसी किसी खबर को यूनियन में दर्ज करने का नियम होता तब जरूर उन गायों को मदद मिल जाती। और फिर वही बात आती है कि सरकारी गौशाला  में लापरवाही हुयी और किसी हिन्दू के पास मदद करने को पैसे नहीं है तो क्या उसने गौमाता के लिए आवाज उठाने का हक़ खो दिया ?

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