Saturday 31 October 2015

अगर परशुराम ने क्षत्रियो का नाश किया तो ..

अगर श्री परशुराम ने 21 बार धरती को क्षत्रियविहीन कर दिया था तो सोचिए एक ही बार क्षत्रियों से विहीन करने के बाद दूसरी बार कैसे क्षत्रियों का जन्म हुआ?
इस सवाल को खोजना होगा तभी दूसरी बार की बात करेंगे। एक समय ऐसा भी आया था जबकि परशुराम को क्षत्रिय कुल में जन्मे भगवान श्रीराम के आगे झुकना पड़ा था। तब...? तो जब सब मर ही गए थे तो श्रीराम कहाँ से आये ?

श्री परशुराम जी का जन्म कहते हैं उत्तरप्रदेश के आज के बलिया के खैराडीह में हुआ था। उत्तर प्रदेश के शासकीय बलिया गजेटियर में इसका चित्र सहित संपूर्ण विवरण मिल जाएगा।
पुरातात्विक खुदाई में यहां 900 पूर्वेसा में समृद्ध नगर होने के प्रमाण मिले थे।

परशुराम योग, वेद और नीति में पारंगत थे। ब्रह्मास्त्र समेत विभिन्न दिव्यास्त्रों के संचालन में भी वे पारंगत थे।

परशुराम राम के समय से हैं। उस काल में हैहयवंशीय क्षत्रिय राजाओं का अत्याचार था। भार्गव और हैहयवंशियों की पुरानी दुश्मनी चली आ रही थी। हैहयवंशियों का राजा सहस्रबाहु अर्जुन भार्गव आश्रमों के ऋषियों को सताया करता था।
एक समय सहस्रबाहु के पुत्रों ने जमदग्नि के आश्रम की कामधेनु गाय को लेने तथा परशुराम से बदला लेने की भावना से परशुराम के पिता का वध कर दिया। जब इस बात का परशुराम को पता चला तो क्रोधवश उन्होंने हैहयवंशीय क्षत्रियों की वंश-बेल का विनाश करने की कसम खाई।

भगवान दत्तात्रेय ने युद्ध के समय कार्त्तवीर्याजुन को हजार हाथों का बल प्राप्त करने का वरदान दिया था, जिसके कारण उन्हें सहस्त्रार्जुन कहा जाने लगा। सहस्त्रार्जुन के पराक्रम से रावण भी घबराता था।

सहस्त्रार्जुन ने परशुराम के पिता जमदग्नि के आश्रम में एक कपिला कामधेनु गाय को देखा और उसे पाने की लालसा से वह कामधेनु को बलपूर्वक आश्रम से ले गया।
जब परशुराम को यह बात पता चली तो उन्होंने पिता के सम्मान के खातिर कामधेनु वापस लाने की सोची और सहस्त्रार्जुन से उन्होंने युद्ध किया। युद्ध में सहस्त्रार्जुन की भुजाएं कट गई और वह मारा गया।

तब सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने प्रतिशोधवश परशुराम की अनुपस्थिति में उनके पिता जमदग्नि का वध कर डाला। परशुराम की मां रेणुका पति की हत्या से विचलित होकर उनकी चिताग्नि में प्रविष्ट हो सती हो गई। इस घोर घटना ने परशुराम को क्रोधित कर दिया और उन्होंने संकल्प लिया- मैं हैहय वंश के सभी क्षत्रियों का नाश कर दूंगा।

कार्त्तवीर्यार्जुन के दिवंगत होने के बाद उनके पांच पुत्र जयध्वज, शूरसेन, शूर, वृष और कृष्ण अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते रहे।
जयध्वज के सौ पुत्र थे जिन्हें तालजंघ कहा जाता था, क्योंकि ये काफी समय तक ताल ठोंक कर अवंति क्षेत्र में जमे रहें। लेकिन परशुराम के क्रोध के कारण स्थिति अधिक विषम होती देखकर इन तालजंघों ने वितीहोत्र, भोज, अवंति, तुण्डीकेरे तथा शर्यात नामक मूल स्थान को छोड़ना शुरू कर दिया। इनमें से अनेक संघर्ष करते हुए मारे गए तो बहुत से डर के मारे विभिन्न जातियों एवं वर्गों में विभक्त होकर अपने आपको सुरक्षित करते गए। अंत में महर्षि ऋचीक ने प्रकट होकर परशुराम को ऐसा घोर युद्ध करने से रोक दिया।

हैहयवंशियों के राज्य की राजधानी महिष्मती नगरी थी जिसे आज महेश्वर कहते हैं जबकि परशुराम और उनके वंशज गुजरात के भड़ौच आदि क्षे‍त्र में रहते थे। परशुराम ने अपने पिता के वध के बाद भार्गवों को संगठित किया और सरस्वती नदी के तट पर भूतेश्‍वर शिव तथा महर्षि अगस्त्य मुनि की तपस्या कर अजेय 41 आयुध दिव्य रथ प्राप्त किए और शिव द्वारा प्राप्त परशु को अभिमंत्रित किया।
इस जबरदस्त तैयारी के बाद परशुराम ने भड़ौच से भार्गव सैन्य लेकर हैहयों की नर्मदा तट की बसी महिष्मती नगरी को घेर लिया तथा उसे जीतकर व जलाकर ध्वस्त कर उन्होंने नगर के सभी हैहयवंशियों का भी वध कर दिया। अपने इस प्रथम आक्रमण में उन्होंने राजा सहस्रबाहु का महिष्मती में ही वध कर ऋषियों को भयमुक्त किया।
इसके बाद उन्होंने देशभर में घूमकर अपने 21 अभियानों में हैहयवंशी 64 राजवंशों का नाश किया। इनमें 14 राजवंश तो पूर्ण अवैदिक नास्तिक थे। इस तरह उन्होंने क्षत्रियों के हैहयवंशी राजाओं का समूल नाश कर दिया जिसे समाज ने क्षत्रियों का नाश माना जबकि ऐसा नहीं है। अपने इस 21 अभियानों के बाद भी बहुत से हैहयवंशी छुपकर बच गए होंगे।

क्योंकि उस वक्त और कोई रास्ता नहीं था.. बाद में परशुराम जी के शांत होने के बाद फिर क्षत्रिय कुल का विस्तार हुआ।

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