Saturday 24 October 2015

साधू संतो को पैसे की जरुरत क्यूँ ?

पत्रकारिता जैसे कार्य जिसे प्राचीन समय में ऋषि मुनि किया करते थे .. वो समाज के उत्तम कुल, उत्तम विचार, सभी उत्तम चीज़ों को समाज में लाते थे .. ताकि सभ्यता का विकास हो .. लेकिन आज बिलकुल विपरीत है ...... आज दुर्गुण, बुरे से बुरे आदमी को सबसे ऊपर लाकर दिखाया जाता है ....हालाँकि उसकी प्रशंसा नहीं होती .. लेकिन दिखाने मात्र से वो प्रशंसीय लगने लगता है .. और अभी तो .. उस बुरे को अच्छा साबित भी कर देते हैं .. आज नास्तिकतावाद हावी है ..
लोग कहते हैं .. साधू संतों को इतने पैसे की क्या जरुरत है .. ? इतने लोगों की क्या जरुरत है ..,,? उनको समझना चाहिए कि आप जैसे नास्तिक लोगों की संख्या कभी इतनी नहीं रही थी .. पहले साधू संत एक कमंडल ले कर पूरी जिंदगी बिता दिया करते थे .. लेकिन तब धर्म का बोलबाला था .. धार्मिक लोग साधू संतो की इज्जत करते थे .. साधू संत जहां भी .. जिस घर के आगे चले जाते .. वहाँ उन्हें भोजन जरुर मिल जाता था .. वो एक शहर से दुसरे शहर .. भ्रमण किया करते थे ..
पर आज क्या ये संभव है ? मैंने कहा ये कलयुग है .. आज क्या पता अगर वो गलती से किसी मुस्लिम मोहल्ले में उसके घर के आगे खड़े हो गए ... तो शायद उनकी हत्या हो जाए .. उनको अपमानित होना पड़े .. और भोजन मिलना तो दूर की बात है .. .और बात सिर्फ मुस्लिम की ही कहाँ है ......आज तो खुद अपने धर्म के लोग भी साधू संतों को एक रोटी नहीं दे सकते .... हिन्दू भूल गए कि "भिक्षा और भीख " में क्या अंतर होता है ? आज साधू को अनादर मिलता है .. ज्ञान फैलाने के एवज में रोटी नहीं .. अपमान मिलता है ..
अगर हम कहें कि इस कलयुग में .. साधू संतों ने इसी वजह से खुद के लोग खड़े किये .. खुद का ऐसा साम्राज्य बनाया .. जहां उनको भिक्षा माँगना ही ना पड़े ... जहां उनके पास एक जगह से दुसरे जगह जाने के लिए .. किसी से याचना ना करना पड़े .. तो क्या गलत है ?? आज ऐसे मजहब के लोग है जो ना जाने उनके ऊपर कब हमला कर दें .. ऐसे में कुछ लोगों को संगठित रख कर आश्रम का निर्माण कतई बुरा नहीं है .. समय के साथ इस युग में साधू संतों ने अपनी खुद की रक्षा के लिए ये सब किया है .. अब जिसे जिस नजर से देखना हो वो देख सकता है ..

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