Tuesday 20 October 2015

हिन्दुओ को नीचा दिखाने के लिए गौमांस खाना शुरू किया था

मुस्लिम समाज के लगभग नौ सौ वर्षों के इतिहास में प्रारम्भ के सात सौ वर्षों में मुस्लिमों द्वारा कभी भी गौमांस खानें के तथ्य नहीं मिलतें हैं.मध्य और पश्चिम एशिया में जहाँ के मुस्लिम मूल निवासी कहलाते हैं या जहाँ मुस्लिम समाज का सर्वप्रथम उद्भव हुआ, वहां गाय नामक प्राणी पाया ही नहीं जाता था.

प्रारम्भ में भारत में आये हुए मुस्लिम आक्रान्ताओं और आक्रमणकारियों ने भारत आकर हिन्दू राजाओं और सरदारों को पराजित करनें के पश्चात उन्हें लज्जित करनें हेतु गौमांस खाना प्रारम्भ किया था. मुस्लिम मांसाहारी तो प्रारम्भ से ही थे, अब वे हिन्दू राजाओं व प्रजा में  पराजय व निम्नता का भाव भर देनें हेतु हिन्दू समाज की पूज्य मानी जाने वाली गाय को काटकर खानें लगे थे.

वे समाज में गैर मुस्लिमों को नीच़ा दिखानें हेतु वे असभ्य प्रकार के नुक्ते लगाते रहते थे जैसे जनेऊ पहनी गर्दनों को सार्वजनिक काटना, मंदिर-मठ-आश्रमों का विध्वंस, हिन्दू कन्याओं को बलात अपनें हरम में रखना आदि. मुस्लिम आक्रान्ता अहमद दुर्रानी ने तो अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पर आक्रमण के समय स्वर्ण मंदिर के तालाब को गौरक्त से भर दिया था.

भारत में भी अपने आगमन के साथ ही अंग्रेज़ों ने यहां गौ हत्या शुरू करा दी और  18वीं सदी के आखिर तक बड़े पैमाने पर गौ हत्या होने लगी. यूरोप की ही तर्ज पर अंग्रेजों की बंगाल, मद्रास और बम्बई प्रेसीडेंसी सेना के रसद विभागों ने देशभर में कसाईखाने बनवाए.

इस प्रकार मुस्लिम समाज व उनके गौमांस खानें के इतिहास को देखें तो स्पष्ट आभास हो जाता है की गौमांस खानें के पीछे कोई धार्मिक, सामाजिक, वैद्द्यकीय कारण नहीं था, न है!! केवल और केवल हिन्दू समाज को नीचा दिखानें तथा उनकी आस्थाओं को चोटिल करनें के हेतु से प्रारम्भ हुआ

जनभावनाएं गौरक्षा हेतु समय समय पर ज्वार की भांति प्रकट होती रहती हैं.हम योगिराज श्रीकृष्ण के अनुयायी हैं जो सुदर्शन और बांसुरी दोनों का ही उपयोग साधू भाव से कर सकतें हैं.

शिशुपाल की 99 गलतियों के बाद 100 गलती पर ही श्रीकृष्ण को उस पर क्रोध आया था और मुरलीधर श्रीकृष्ण, सुदर्शन धारी होनें को मजबूर हुए थे और शिशुपाल का सर काट कर रख दिया था.

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